शनिवार, सितंबर 04, 2021

🌼 शिक्षक दिवस 🌼

आज शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने सभी शिक्षकों के चरणों में सादर प्रणाम करती हूँ। जीवन में गुरु बहुत आवश्यक है। गुरु उस आधारशिला की नींव रखते हैं, जिस पर हमारे चरित्र का सुंदर और विशाल भवन निर्मित होता है। वे ज्ञान के साथ-साथ हमारे अंदर अच्छे संस्कार भी भरते हैं, एक पत्थर को तराश कर हीरा बनाते हैं। इसलिए गुरु में निष्ठा, दृढ़ इच्छाशक्ति और अथक परिश्रम तीनों आवश्यक है। गुरु का उत्तम होना भी जरूरी है कई बार हमें गुरु तो श्रेष्ठ मिलते हैं पर इच्छाशक्ति के अभाव में हम वह मुकाम हासिल नहीं कर पाते जो हमें चाहिए, परंतु यह भी सच है कि प्रकृति के कण-कण में गुरु और ज्ञान भरा है।
हमारे अंदर गुरु के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। उदाहरणार्थ एकलव्य को लेते हैं जब गुरु द्रोणाचार्य ने उसका गुरु बनने से इनकार कर दिया तब उसने मिट्टी से गुरु द्रोण की प्रतिमा बनाकर पूरी निष्ठा से धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा और अंत में एक श्रेष्ठ धनुर्धर बना।
                      जैसे हम एक पेड़ को यदि गुरु मान लें तो उससे हम त्याग बलिदान और बिना किसी इच्छा के दान देने की शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। एक पेड़ खुद तो धूप और वर्षा को सहता है पर अपनी छत्रछाया में आए व्यक्ति को इससे बचाता है। फलदार पेड़ पर कोई पत्थर भी मारे तो उसे वह अपना फल ही देता है। वह अपने फूलों की खुशबू उसे भी देता है जो कुल्हाड़ी लेकर उसे काटने आते हैं अर्थात दान का इससे बेहतर उदाहरण हो नहीं सकता। जरूरी नहीं कि आध्यात्मिक गुरु से दीक्षा लेकर अध्यात्म के मार्ग पर चलकर ही हम सन्मार्ग पर चल सकते हैं। हम उस व्यक्ति से भी शिक्षा ले सकते हैं जिसे महाभारत काल से लेकर आज तक की पीढ़ियों ने नकारात्मकता का प्रतीक माना है। उदाहरण के लिए कौरवों के जेष्ठ भ्राता सुयोधन। बुरे कर्मों से उसका नाम दुर्योधन हो गया। इतिहास मे उसका चरित्र चित्रण नकारात्मक रूप में किया गया है परन्तु हम चाहें तो उसमें भी इतने गुण थे जिसे हम ग्रहण कर सकते हैं। वह एक अच्छा मित्र था। उसने अंत समय तक कर्ण से मित्रता निभाई। जब लोगों के सामने सूत पुत्र कह कर उसका अपमान हो रहा था तो दुर्योधन ही ऐसा व्यक्ति था जिसने उसे अंग देश का राजा घोषित करते हुए उसके सिर पर राजमुकुट रखा और उसे सूत पुत्र के कलंक से मुक्त कराया। उसमें एक और गुण यह था कि जिस पर विश्वास करता था पूरी निष्ठा से करता था। एक बार दुर्योधन ने देखा कि कर्ण उसकी पत्नी के साथ हंसी मजाक में व्यस्त था पर दुर्योधन के अंदर उसके लिए कोई कलुषित विचार नहीं आया क्योंकि उसे जितना विश्वास अपनी पत्नी पर था उससे कहीं अधिक अपने मित्र के ऊपर था। इतना ही नहीं मृत्यु से पहले उसने कृपाचार्य से कहा कि उसकी मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी कर्ण के पुत्र वृषकेतु को बनाया जाए। मित्रता का उदाहरण जो दुर्योधन ने प्रस्तुत किया वह शायद ही कहीं देखने को मिले।
अब हम बात करते हैं विभीषण और कुंभकरण की। दोनों की अपनी-अपनी सोच थी। विभीषण सत्य के मार्ग पर चलना चाहता था इसलिए उसने अपने सगे भाई तक का परित्याग कर दिया। उसकी दृष्टि में एक नारी का अपमान सबसे बड़ा पाप था इसलिए उसने राम का साथ दिया अपने भाई का नही।
कुंभकरण जानता था कि रावण गलत है, गलत कर रहा है पर है तो उसका बड़ा भाई। उस पर राजा। और राजा की आज्ञा मानना प्रथम कर्तव्य है इसलिए उचित हो या अनुचित, वह अपने भाई का साथ देगा, राम का नही। वह जानता था कि राम के हाथों उसकी मृत्यु भी निश्चित है फिर भी उसने रावण के आदेश का पालन किया।
कुंभकरण और विभीषण दोनों की सोच अपनी-अपनी थी और दोनों अपनी जगह सही भी थे। दोनों अपने निश्चय पर दृढ़ रहे। निष्कर्ष यह है कि हमारा निश्चय दृढ़ होना चाहिए परिणाम चाहे जो हो। युद्ध भूमि में जब रावण मरणासन्न पड़ा था तब लक्ष्मण प्रसन्न हो रहे थे। राम ने उनसे कहा कि आज दुनिया से एक बहुत बड़ा ज्ञानी बहुत बड़ा पंडित और बहुत बड़ा शिव भक्त जा रहा है। वह बहुत बड़ा कूटनीतिज्ञ भी है लक्ष्मण जाओ तुम उनसे कुछ सीख लेकर आओ। लक्ष्मण जाकर रावण के सिर के पास हाथ जोड़कर खड़े हो गए। रावण लक्ष्मण से बोले तुम पहली सीख तो यह लो कि जब गुरु से ज्ञान लेने जाते हैं तो उनके चरणों में बैठते हैं ना कि सिर के पास। इस घटना से हम यह सीख ले सकते हैं कि जब हमें ज्ञान अर्जित करना है तो हमें गुरु के चरणों में श्रद्धापूर्वक एवं विनम्रता से बैठना होगा और अपने अंदर एक दृढ़ निश्चय रखना होगा।
एकलव्य की विद्या दृढ़ निश्चय का ही परिणाम थी। जिस दिन हम स्वयं को संपूर्ण मान लेंगे हम किसी भी गुरु के संरक्षण में सफल नहीं होंगे पर जिस दिन हम संपूर्ण को अपने अंदर समाहित करने की कोशिश करेंगे हम निश्चित रूप से सफल होंगे।
कहने का अर्थ यह है कि हमारे अंदर अच्छाई होनी चाहिए, गुरु शब्द में निष्ठा होनी चाहिए, दृढ़ निश्चय होना चाहिए, हर व्यक्ति और प्रकृति के कण-कण से ज्ञान अर्जित करने की कोशिश करनी चाहिए, फिर सर्वत्र हमें गुरु दिखाई देंगे और हमारे अंदर ज्ञान, गुण और सकारात्मकता भरपूर होगी। 
              संसार के सभी गुरुजनों को शत शत नमन।
                                   
                                         ✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )

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