गुरु इक दर्पण ज्ञान का,
शिष्य को दिया ज्ञान अपार।
ज्ञान पुंज प्रज्ज्वलित कर,
जग पर किए कई उपकार ।।१।।
उपदेश दिए गुरु शिष्य को,
उर में लिये समाय।
फिरत-फिरत जगत मिल्यो,
दिशि-दिशि ज्ञान पहुँचाय ।।२।।
ईश्वर ने दिया संसार है,
गुरु ने दिया है ज्ञान।
शिष्य ने गुरु को पाकर के,
खुद को समझा महान ।।३।।
गुरु तेल शिष्य बाती है,
ज्ञान से तिमिर मिटाय।
शिष्य को देख गुरु उर से,
फूले नहीं समाय ।।४।।
उदधि रूपी गुरु मिले,
तो ज्ञान के गोते लगाय।
अज्ञान मन रूपी जगत में,
ज्ञान की अलख जगाय ।।५।।
गुरु रत्नगर्भा ज्ञान के,
बूंद-बूंद में है समाय।
ज्ञान देत जितना शिख को,
उतना बढ़ता जाय ।।६।।
✍️ कैलाश उप्रेती "कोमल" ( चमोली, उत्तराखंड )
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