सोमवार, अगस्त 09, 2021

* स्नेह का आवरण *

 
स्नेहमयी चांदनी स्नेह युक्त हवा
 स्नेह भरा तरुवर स्नेह मयी धरा
 स्नेह का शीशा लगा फिर देख जरा
 दिल में है स्नेह तो सब है स्नेह भरा

 स्नेह सुधा बरसाना चंदा
 स्नेह से दीप जलाना चंदा
 बिन स्नेह ज्यों दीप जले ना
 ज्योति बिना कोई घर सजे ना

 जाड़े में जब सूरज आए
तपिश स्नेह की वह बरसाए
 गर्मी में जो ज़रा ना भाये
 शीत ऋतु में स्नेह लुटाए

 नदिया तेरा स्नेह अनूठा
 बिन शीतल जल जीवन झूठा
 जल ही जीवन कहते हैं सब
 तेरे नीर से पलते हैं सब

 तुम भी स्नेह लुटाते तरुवर 
 फूल और फल अपने देते
 छाया में तुम सबको रखते
 विटप नहीं तो हम ना होते

 पुरवइया का स्पर्श स्नेहयुक्त
 छू कर हमें यूँ सहलाती है
 कानों में मिश्री सी घोले
 मां जैसी लोरी सुनाती है

धरा प्रेम की बात करूं क्या
 वह तो जग की जननी है
जल, फूल,फल,अन्न वह देती
 उसकी बात क्या करनी है

       ✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )

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