कितने पल कितने क्षण बीते,
मौसम बदला ऋतुएँ बदली,
नहीं बदला जो रंग स्नेह का,
श्यामल देह मन पारस सा,
कान्हा के नैनो के मोती, राधे पलकों में सजाती है,
राधा के हिय का दर्द कान्हा की मुरली गाती है,
राधा छूँटी, गोपियाँ छुँटी और छुट गया पावन
वो यमुना का तट,
संगी छूटे, साथी छूटे,और छूट गई गोकुल की
गलीयाँ नहीं छूटा तो राधे तेरे स्नेह का रंग,
जो श्याम के हीया में समाए है,
आज भी मथुरा, वृंदावन गवाह है,
अमूल्य,अनमोल राधेश्याम के स्नेह का,
यमुना का घाट जो समर्पित है,
कण,कण में जहाँ बसा है
गोपियों के स्नेह का रंग,
कहीं फूलों में बनके खुशबू सुवासित है,
कहीं मयूरा के नृत्य की थीरकन में,
पत्ते-पत्ते ,बूटे-बूटे पर अंकित है,
राधे के नैनों के नीर से सुशोभित है,
हर चमन की कली बन निश्छल स्नेह,
कितने आए कितने गए,
युग बदले युग मापक नए,
पर भाव समर्पण के ना बदलेंगे,
सौदा है यह राधे संग स्नेह का,
नेह निभाने में माहिर है मुरली की धुन,
राधेश्याम का अक्षुण्ह स्नेह था, है और रहेगा।।
✍️ सुनीता सिंह सरोवर ( देवरिया, उत्तर प्रदेश )
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