नारी तुम हो रूप की छाया
तुम पर ही सम्पूर्ण सृष्टि की काया,
नख से सिर तक तुम हो देवी रूपी माया,
रूप रंग की अनुपम दर्शन हो तुम,
हर सावन मास की हरियाली हो तुम,
हर सिंगार की डाली हो तुम,
जीती जागती फुलवारी हो तुम,
मधुवन की प्याली हो तुम,
जीती जागती सुन्दर नारी हो तुम,
अधरों की लाली हो तुम,
आँखों की कजरारी धारी हो तुम,
हाथों की कंगन नेयारि हो तुम,
फूलों से वेणी सजी लहराती नारी हो तुम,
सजी धजी देवी सी मूरत हो तुम,
हर तीज की महिमा हो तुम,
सोलह सिंगार की गरिमा हो तुम। ✍️ डॉ० उमा सिंह बघेल ( रीवा, मध्य प्रदेश )
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