आज बड़ा ही शुभ दिवस है आया
मेरे प्रभु का जन्मदिवस है आया
मैं भक्त प्रभु हरि का
भजु दिन रात हरि का नाम
मन में बसे प्रभु मेरे
इस विचलित मन को
हरि चरणों मे ही चैन मिले
मैं मन्दिर चाहे ना जाऊं
ना दीप रोज जलाऊं
ना ही कोई पाठ, आरती
मैं भले ना कर पाऊं
ना ही कोई फूल-फल
का भोग कभी लगा पाऊं
पर आँखे बन्ध करते ही
हे प्रभु तेरे मैं दर्शन पाऊं
तोड़ सब मोह के धागे
बस हरि में तुझ में रम जाऊं
अब मेरे हरि ही मेरा भरोसा
वो अब मुझे कहीं भटकने नही देंगे
हरि से जुड़ा अलग ही नाता है
अब ना कोई शिकवा-शिकायत किसी से
मुझे हरि का ही बस सहारा है
आज जन्माष्टमी का विशेष दिवस है
हरि का रूप कान्हा मुझे लगता प्यारा है
पंचामृत से स्नान कराकर
करना कान्हा का श्रृंगार सारा है
माखन-मिश्री का भोग लगाकर कान्हा को
मैंने जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाना है
✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )
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