तेरी कथा अनेक
आज सुनाऊं उनमें से एक
तुमने अर्जुन को दिया ज्ञान
गीता का देकर व्याख्यान
पांचाली को मान सखी
तुमने उसकी लाज रखी
यशोदा मैया के थे प्राण
और नंद बाबा की जान
मीरा तुमको स्वामी कहती
और हृदय में तेरे रहती
राधे-राधे सांसे तेरी कहती
रुक्मणी को यह बात अखरती
एक दिन कृष्णा से बोली वह
प्रभु मैं तेरी पटरानी हूँ
मुझ से अधिक है नेह तुम्हारा
राधा से, अब मैं जानी हूँ
मैं दिन-रात तेरे संग रहती
तेरी सांसे राधा ही जपती
मन तेरा गोकुल में बसता
मुझे नहीं यह जरा है जचता
बोले कृष्णा, याद नहीं करता मैं उनको
हाँ यह सच है भूला नहीं कभी हूँ उनको
कुछ दिनों के बाद एक दिन
प्रभु पीड़ा से ग्रसित हुए
महल के नर नारी सभी
इसे देखकर व्यथित हुए
वैद्य, पंडित बुलाए गए
पर गई नहीं उनकी पीड़ा
पूछा रुक्मणी ने स्वामी से
तुम ही बताओ कैसे दूर करुँ पीड़ा
भक्त मेरा कोई यदि अपने
पैरों की धूल लगाएगा
तो मेरा यह सिर का दर्द
पल में दूर हो जाएगा
यह महापाप मुझसे ना होगा
पैरों की धूल लगाऊंगी
ना जाने कितने जन्मों तक
घोर नरक में जाऊंगी
किसी ने दिया नहीं प्रभु को
अपने पैरों की थोड़ी सी धूल
प्रभु ने बोला फिर उद्धव से
गोकुल से ले आओ धूल
उद्धव को देख गोप, गोपियां,
राधा ने पूछा प्रभु का हाल
उद्धव ने बताया कई दिनों से
प्रभु पीड़ा से हैं बेहाल
भक्तों के पैरों की थोड़ी धूल चाहिए
वही मैं लेने आया हूं
क्या कोई दे सकता मुझको
वही पूछने आया हूँ
रौंद दिया सब ने अपने
पैरों से गोकुल की वसुधा को
लाखो बरस नर्क हो चाहे
गोकुल वासी और राधा को
ले जा तू सारी धूल समेट
जा प्रभु के मस्तक पर लपेट
झट प्रभु की पीड़ा दूर करो
तुम जन्म हमारा धन्य करो
उद्धव स्तब्ध थे भक्ति देख
प्रभु से गोकुल का प्रेम देख
बोले प्रभु से गोकुल में
मैं प्रेम का दर्शन कर आया
चुटकी भर धूल की कौन कहे
मैं बोरियों में भर लाया
प्रभु ने तिरछी नजरों से
देखा रुक्मणी की ओर
जय राधे जय गोकुल वासी
जय-जय नंदकिशोर
जय राधे जय मनमोहन
शोर उठा चहुं ओर
जय राधे जय गोकुल वासी
जय-जय नंद किशोर
✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )
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