एक निश्छल प्रेम का
कृष्ण की जब मुरली बजती
क्या सिंह, क्या हिरण
सब राग द्वेष भूल
एक ही सरोवर तट पर
आ जाते पानी पीते
क्या मानव, क्या पशु, क्या पक्षी
सब प्रेम रूपी मुरली धुन में एक हो जाते
प्रेम की पराकाष्ठा ये ही
अपने आप को भूलकर
प्रेममय हो जाना
राधा कृष्ण का प्रेम
अति मधुर एवं निश्छल
प्रेम हमे ये ही सिखाये
आत्मसमर्पण अपने आप का
कृष्ण और राधा कभी एक दूसरे के हुए नही
पर दोनों कभी अलग भी तो हुए नही
जहां राधा वहां कृष्ण
जहां कृष्ण वहां राधा
जब भी कृष्ण का नाम आये
कृष्ण से पहले सब राधा-राधा पुकारा करे
राधा-कृष्ण में दो कौन हुए
दोनो ही एक प्रेम सूत्र में
बंधे हुए मिले
प्रेम सूत्र ऐसा
जो सम्पूर्ण सृष्टि को
बांधने की क्षमता रखता
कितना अच्छा हो
यदि हम सब कृष्णमय हो
कही नफरत कही द्वेष न हो
बस चहुँ ओर प्रेम का गुंजन हो
जय जय राधा-कृष्ण, जय जय राधा-कृष्ण
✍️ वाणी कर्ण ( काठमांडू, नेपाल )
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