श्री कृष्ण में बसी।
हर मान में सजी
हर राग में गुथी।
हर गीत में श्री कृष्ण की हुई,
हर संगीत में श्री कृष्ण की हुई।
हर दर्द को जीत के जी,
हर मर्ज को मार के रही।
मीरा श्री कृष्ण प्रेम की पुजारन,
मीरा श्री कृष्ण की दुलारी।
मीरा कृष्ण राग में रमी,
मीरा कृष्ण प्रेम में बसी।
हर कठिन प्रण में डटी,
हर टीस को मुस्कुरा के सहई।
श्री कृष्ण रूपी प्रेम में संवरी
विरह रूपी प्रेम में व्याकुल हुई।
मीरा कृष्ण का ये प्रेम मीरा का साधक बना,
श्री कृष्ण मीरा के आराध्य बने।
इस प्रेम को ना किसी ने जाना,
इस प्रेम को ना किसी ने सच माना।
अपने ही मीरा के बन गए वैरी
जिन्होंने मीरा को विषपान कराने में नही की देरी।
मीरा का पवित्र प्रेम,
श्री कृष्ण की महिमा में रमा।
कटु विष बन गया,
मीरा के लिए अमृतपान।
✍️ डॉ० उमा सिंह बघेल ( रीवा, मध्य प्रदेश )
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