कंस की चीत्कार से कांपे, मथुरा कारागार के गलियारे।
देवकी-वासुदेव के अंतस में, छाए कृष्णपक्ष के अंधियारे।
कैसी विडंबना किस्मत की, सोचे देवकी मय्या मन में।
सात-सात संताने खोई मैंने, निज आँखों के सामने।
अर्धरात्रि में अदभूत आभा से चमका, कारागार का कोना-कोना।
विष्णु अवतार जनेगी देवकी, चमका जननी मुख सलोना।
हुई आकाशवाणी, छोड़ आना देवकीसूत, गोकुल नंदधाम।
देवकी की गोद में कन्या को रख, देना वासुदेव सूता नाम।
घनघोर घटाएं छाई, चंचल सौदामिनी, कड़कड़ाती आई।
उमड़-घुमड़ बदरा आई, बरखा रानी मन हर्षाई।
वासुदेव चले, पल-पल बढ़ती यमुना में, कान्हा को टोकरी में ले।
चूम कृष्ण के पद पंकज, उतरी यमुना श्रीहरि चरण रज ले।
कंस करे तांडव, नृत्य करे असूर, पर पहुंचा कान्हा, गोकुल में।
छल, कपट, संत्रास, भय, हर प्रयास निष्फल दुष्ट कुल में।
कंस मचाए उत्पात, कालिया, पूतना के अट्टहास, गोकुल में।
अष्टमी का चंदा, कान्हा बढ़ता गया पूर्णमासी सा नंद कुल में।
माखन चोर, यशोदा का लाला, ग्वालों संग खेले मतवाला।
कालिया नाग के फन पर नाचे, गोपाला, नंदलाला।
खोल वदन, कराए विराट प्रभु दर्शन, राधारमण, देवकीनंदन।
गोपियों संग रास रचाए, बांसुरी बजाय, रासबिहारी जग वंदन।
दुर्बल तारी, धर्म संवारी, गोवर्धनधारी, रासबिहारी।
बृजमोहन, द्रोपदी शील रक्षक, न्याय पुजारी, कृष्ण मुरारी।
रुक्मिणी वर, अर्जुन रथ सारथी, गीता उपदेशक, सुदर्शन धारी।
अच्युतम्, केशवम् , विष्णु रुपम्, मोर मुकुट धारी।
✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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