सोमवार, अगस्त 30, 2021

🏵️ मनमोहक कान्हा 🏵️

भाद्रपक्ष कृष्ण की अष्टमी तिथि,
रोहिणी नक्षत्र थी घोर अंधेरी रात, 
भये प्रकट मथुरा के कारागार में,
वासुदेव-देवकी की गोद में आए पालनहार,
चहुं ओर बरखा रानी का मच रहा शोर, 
वासुदेव 'देवकीनंदन' को ले जा रहे
नंद बाबा के द्वारे,
यमुना ले रही हिलोरें,
छू चरण शांत पड़ जाए,
शेषनाग की सेवा देख,
 कृष्णा मन ही मन मुस्काए,
 माँ यशोदा देख लला को,
 फूली नहीं समाए,
 मोर मुकुट है ललाट पर,
 बंसी मधुर बजावे, खो सुध-बुध ग्वाल-गोपालन,
 सबके मन को भावें,
 कृष्ण कन्हैया नटखट चितचोर,
 मैया यशोदा को बहुत सतावें, 
 माखन मिश्री खाएं कन्हैया,
 चलत घुटरुन पैजनिया खूब बजाएं,
 मोती की लड़ियों सी दांतिया,
 मैया को बहुत रिझाए,
 कान्हा के दृग लोचन पर जब निंदिया डेरा डाले,
 मैया की गोद में थपकी पाकर सपनों में खो जाए,
 माँ सुंदर बदन देख कान्हा का,
 फिर निहाल हो जाए, 
 नजर न लगे मेरे कान्हा को वारि-वारि जाए,
 गली-गली घूमत कान्हा,
 मटकी फोड़त, ग्वालन को खूब सताए,
 खीझत मैया श्याम को ओखल बांधी आए,
 माँ के घुड़कन पर भोले से मुख में,
 सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड दिखाए।
 ज्ञान गीता का सार सुनाने,
 कान्हा जग में आए।
 है कृष्णा से जग सारा,
 कृष्णा कण-कण में है समाए।

              ✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...