मेरा घर है सबसे घना,
तिनका-तिनका जोड़ कर,
मेरी दुनियाँ अलग बनी,
जब मन करता,
जी भर के घूमता,
चहक चहक के,
जीवन रूपी गीत गाता,
हर एक पल में जीवन को जीता,
पल-पल में मंत्रमुग्ध होता,
आजादी से जीवन को मैं पाता,
कोई क्या मुझे कैद कर पाता,
अपने ख्यालों से जीवन को जीता,
खुशी से आगे मैं बढ़ता,
हर पथ को मैं जानता,
हर गली को मैं पहचानता,
डाली-डाली को मैं पहचानूं,
हर रंग को में जानूँ,
अपनी खुली हवा को,
मैं महसूस करुँ,
हर दर्द को मैं जानूँ ,
खुली हवा में जी रहा था,
अपने आशियाने में रह रहा था,
वक्त की मार को भाप रहा था,
कोई अन्जाना मीत मुझे पिंजरे में डाल रहा था,
मेरी आजादी को मुझसे छीन रहा था,
अपने घर की रौनक मुझे बना रहा था,
मेरे आशियाने को पिंजरा बना रहा था,
खुली हवा को बन्द पिंजरे में बन्दी बना रहा था,
मेरी आजादी को मुझसे छीन रहा था,
मेरे विचारों को अपने घर में कैद कर रहा था,
मेरे सुकून को अपने घर की खुशी बना रहा था,
घौसला को पिंजरा मेरा दोस्त बना रहा था,
दोस्ती की मिशाल को जो दागदार कर रहा था,
मेरी स्वतंत्रता को अपने सांचे में जो भर रहा था। ✍️ डॉ० उमा सिंह बघेल ( रीवा, मध्य प्रदेश )
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