गोकुल धाम पधारे प्रभु तुम,
ग्वालन के संग खूब सुहाये।
नन्द की गाय चराने को माधव,
नन्दन कानन में है विराजे।। १।।
गोपिन बिन सहाये नहीं,
नन्द के घर का दीपक आयो।
ब्रजधाम को मिल्यो अमूल्य निधि,
असुर को विधि विधान बतायो।। २।।
जमुना जल को मुक्त कियो प्रभु,
गोकुल को जीवन प्राण दिये।
महादानव कंस संहार कर प्रभु,
अवनि को दानव मुक्त किये।। ३।।
बांसुरी धुन बजाय के केशव,
निर्जीव में प्राण उतारो।
ब्रजवासिन के उर में नन्द नन्दन,
प्रेम को रूप उपजायो ।। ४।।
शक्र के दर्प मिटाय को केशव,
गिरि गोवर्धन तर्जनी उठाये।
प्रभृति दानवों का नाश किये,
वसुधा में धर्म को पुन: उपजाये ।।५।।
माखन चोरी करियो है बहुत,
गोपिन को है खूब सताये।
राधिका रानी के जीवन में,
प्रेम नाम की ज्योति जगाये।। ६।।
✍️ कैलाश उप्रेती "कोमल" ( चमोली, उत्तराखंड )
Waah sundar rachna
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