इस वर्ष हम आजादी के 75 साल बाद "स्वतंत्रता दिवस" एक महान राष्ट्रीय पर्व के रूप में मना रहें हैं।
स्वतंत्रता दिवस मनाने का जो सौभाग्य हमें हासिल हुआ है इसके लिए एक लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। मुगलों और अंग्रेजों से लड़कर हमने आजादी पाई है और आजादी पाने के बाद "स्वतंत्रता दिवस" एक राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। आज़ादी के 75 वें साल पर इस बार हम सब स्वतंत्रता दिवस का झंडा फहराएंगे। इस झंड़ा फहराने के लिए जो कुर्बानी दी गई है उसे भुलाया नहीं जा सकता है।
यह तो सर्वविदित है कि देश के महान युवाओं और योद्धाओं ने अपनी जान की कुर्बानी दी है। किन्तु परोक्ष रूप से महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक जो विरांगनाएं डटी रही उनमें सबसे पहले कित्तूर की रानी चेन्नमा, बेगम हजरत महल, ऐनी बेसेंट, भीकाजी कामा, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, अरूणा आसफ अली, कमला नेहरू, डाॅ लक्ष्मी सहगल और दुर्गा बाई देशमुख जी शामिल हैं। दुर्गा बाई देशमुख जी गांधी जी से बहुत प्रभावित थी और उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया था। भारत की आज़ादी में एक वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और एक राजनेता की सक्रिय भूमिका निभाई थी। आज स्वतंत्रता का महत्व बच्चा-बच्चा जानता और समझता है क्योंकि सभी को आजादी चाहिए। बंदिशों में रहना जुल्म सहना किसे स्वीकार होगा ?
✍️ सरिता कुमार ( फरीदाबाद, हरियाणा )
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