आज़ादी तो होती ऐसी, जो सबको लागे प्यारी,
चाहे वो महलों में रहता
या गरीब कोई हमाली।
नीले अंबर मे उड़ते पंछी,
प्रसन्न होते ये गुनगुनाये,
पंख कतरे पिंजराबंद हो तो,
बिन खाये गाये मिट जायें।
रेहन बनकर बहुत दिवस तक,
भारत माँ ने दुख ताप सहे,
आज़ादी पाने की ख़ातिर,
जाने कितनों के लहू बहे।
आज़ाद ख्याल भी रखें मगर,
उलझाये ना ये युवा नज़र,
पश्चिमी रंगों में रंगने हेतु,
कहीं थामे न अंधेरी डगर।
आज़ादी बड़ी है अनमोल,
आओ हम सब थामे डोर,
आज़ाद विचार ख्याल हो पर,
मर्यादा का ना छोड़े कोर।।
✍️ पदमा दीवान "अर्चना" ( रायपुर, छत्तीसगढ़ )
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