गुरु वह होते हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं, जो शिक्षक और अध्यापक होते हैं, या फिर धनुर्विद्या वेद पाठ, युद्ध कला आदि भी सिखाते हैं। रामायण से लेकर महाभारत काल तक गुरु का स्थान सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण था इसलिए कहा गया है __
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है गुरु ही विष्णु है और गुरु ही शिव है गुरु ही साक्षात परब्रह्म है इसलिए गुरु को प्रणाम है |
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, पालनकर्ता विष्णु और संहार करता शिव गुरु में ही समाहित हैं |
गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। वेद व्यास ऋषि पाराशर के पुत्र थे उन्होंने श्रीमद् भागवत, महाभारत और 18 पुराणों की रचना की थी। उन्हें त्रिकाल ज्ञाता भी कहा जाता है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। कबीर ने गुरु के महत्व को इन पंक्तियों में दर्शाया है।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाय
अर्थात गुरु और गोविंद यदि दोनों एक साथ खड़े हों, तो पहले हमें गुरु को प्रणाम करना चाहिए क्योंकि गुरु ने ही हमें ईश्वर की सत्ता का ज्ञान कराया है इसलिए गुरु की सत्ता ईश्वर से भी बड़ी है। गुरु सामने हो या ना हो उसके स्मरण मात्र से हमारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है
गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट
अंतर हाथ सहार दे
बाहर वाहे चोट
अर्थात जिस तरह एक कुमार घड़ा बनाने से पहले मिट्टी सेएक एक कंकड़ को चुनकर निकालता है उसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों के एक-एक दुर्गुण को चुनकर निकालते है। वह घड़े को आकार देने के लिए एक हाथ से ठोकता हैं तथा दूसरा हाथ घड़े के अंदर रखता हैं ताकि उसका आकार ना बिगड़े | गुरु भी इसी तरह अपने शिष्यों को एक सच्चा इंसान बनाते हैं | कठोर अनुशासन में रखकर उसके दुर्गुणों को दूर करते है। हमारी पहली गुरु हमारी मां होती हैं उनकी दी हुई सीख हमें जीवन भर याद रहती है इसलिए गुरु के रूप में पहले हमें मां को प्रणाम करना चाहिए। गुरु के प्रति हमें पूर्ण आस्था और विश्वास रखना चाहिए। गुरू ही हमें जीवन का सही मार्ग दिखा सकते हैं। इस गुरु पूर्णिमा पर सद्गुरु का शत-शत नमन, वंदन और सादर अभिनंदन।
"जय गुरुदेव"
✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )
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