अज्ञान तिमिर कैसे हर जाऊं ?
मैं बालक ! मंद, अबोध, अज्ञानी,
वेद-शास्त्र, धर्म-मर्म कछु न जानी।
गीता, कुरान, बाइबल, गुरुवाणी।
आगम, उपनिषद्, ज्ञान की खाणी।
आतम ज्ञान ज्योत, कैसे प्रकटाऊं ?
गुरु बिन ज्ञान, कहां से मैं पाऊं ?
मैं मूढ़ ! कैसे बनु पंडित, ज्ञानी ?
गुरु बिना कौन समझाएं वाणी ?
गुरु ! मैं काष्ठ, आप श्री हुनर के धनी।
छीलत, गढ़त मूरत बहुविध सोहनी।
सद्गुरु ! आप कुम्हार, मैं गीली मिट्टी,
दे आकर कुशल हाथ, चक्के पे मिट्टी।
गुरुवर! मैं भीगे आटे की कच्ची लोई,
अंगीठी चढाई आप फुल्का मृदु पोई।
गुरु ! तुम बिन ना मोक्ष, ना हैं मुक्ति।
गुरु ! तुम कृपा बिन निरर्थक भक्ति।
गुरु ! ब्रम्हा, विष्णु, गणाधिश, ज्ञान प्रदाता।
गुरुकृपा बिन कैसे हो भव पार विधाता ?
गुरु सुमिरण सु सफल मनुज जन्म भारी।
गुरु चरण रज देव, धर्म, दर्शन हितकारी।
✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई , महाराष्ट्र )
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