गुरुवर को कहूँ बढ़कर सबसे।
बिन गुरु ज्ञान अधूरा है मानव
सब ग्रंथ कहें यह जाने कब से।
ईश्वर का जो है नाम सिखाये
सच्चाई का पथ बतलाता है।
हर अँधियारे को दूर करे वो
सच्चाई ही जो सिखलाता है।
गुरु की है महिमा अजर-अमर
गुरु में ऐसी शक्ति निहित जो
अज्ञान का अँधियारा भगाता।
माया ठगिनी के जाल काटके
मोह निद्रा से सबको जगाता।
बिन गुरु ज्ञान अधूरा है मानव
सब ग्रंथ कहें यह जाने कब से।
आलोकित करता वह जीवन
ज्ञानचक्षु खोले नित जन के।
करता गुरु ही निर्मल जीवन
विषय वासना हटते मन के।
करते गुरु चरणों में नमन हैं
वे मिले हमें जीवन में तब से।
✍️ डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"
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