पर मैं सोचूँ क्यों हो एक दिन का बन्धन
क्यों ना करूँ मेरे गुरु का हर दिन पूजन
गुरु से हमको है ज्ञान मिला
गुरु के कारण ही है सम्मान मिला
अक्षर ज्ञान सिखा कर दिव्य ज्योति
देने वाले गुरु ने विद्या का दान दिया
अक्षर ज्ञान सिखा कर हमको विद्वान बनाया
गुरु की कृपा बिना होती हर विधा अधूरी
फिर कैसे होती अपनी दीक्षा पूरी
नमन करें ऐसे गुरु को हम दिन रात
गुरु बिन हमारी नही कुछ औकात
नमन करूँ मैं जीवन के प्रथम गुरु को
वह है मेरी माता अपनी जिसने हमको
खाना पीना हँसना रोना सिखला कर
पहला जीवन का ज्ञान दिया
मां के आंचल में छुप जीवन की पहली शिक्षा हमने पाई है
जिसके आँचल में पीड़ा से लड़ने की ताकत आई है
बिना किसी कलम दवात के दिया हमे है विद्यादान
माता रूपी प्रथम गुरु को प्रातः काल करूँ प्रणाम
फिर मैं नमन करूँ पिता को जो हैं मेरे पालनहार
हाथ पकड़ अपने पैरों पर चलना सिखलाया
ठोकर खाकर गिरने पर उत्साह बढ़ाया
उनका मेरे जीवन पर है अगणित उपकार
माता पिता सभी गुरुजन हैं मेरे शिक्षक, मेरे गुरुवर
लेकर इनसे शिक्षण मैंने पहचाना दुनिया के स्वर
फिर मेरे प्यारे शिक्षक गण उन्हें नमन मैं करती हूँ
उनके दिए ज्ञान से हर पल झोली अपनी भरती हूँ
मैंने तो सीखा है नन्हें बच्चों से भी अनुपम ज्ञान की बात
नन्हें गुरु देते हैं मुझको टेक्नोलॉजी की सौगात
मेरे गुरु धरती आकाश और हैं चांद-सितारे
नदियाँ लता वृक्ष देते हैं मुझको शिक्षण प्यारे-प्यारे
इन सब से भी शिक्षा लेकर आज चली जीवन पथ पर
मेरे प्यारे छोटे बड़े सभी गुरु जन करती हूँ उन्हें नमन
मेरी श्रद्धा के फूल निछावर मेरे गुरुवर को है वंदन
मेरे गुरुवर के चरणों में है मेरा शत-शत बार नमन
एक बार एक दिन नही मेरी पूजा हर दिन होगी
अपने सभी गुरु जन को है मेरा नमन वन्दन
एक दिन का बन्धन नहीं हर पल हर दिन
क्यों ना करूँ मैं मेरे गुरु का हर दिन पूजन अभिनन्दन
✍️ निर्मला कर्ण ( राँची, झारखण्ड )
गुरु की कृपा बिना होती हर विधा अधूरी
फिर कैसे होती अपनी दीक्षा पूरी
नमन करें ऐसे गुरु को हम दिन रात
गुरु बिन हमारी नही कुछ औकात
नमन करूँ मैं जीवन के प्रथम गुरु को
वह है मेरी माता अपनी जिसने हमको
खाना पीना हँसना रोना सिखला कर
पहला जीवन का ज्ञान दिया
मां के आंचल में छुप जीवन की पहली शिक्षा हमने पाई है
जिसके आँचल में पीड़ा से लड़ने की ताकत आई है
बिना किसी कलम दवात के दिया हमे है विद्यादान
माता रूपी प्रथम गुरु को प्रातः काल करूँ प्रणाम
फिर मैं नमन करूँ पिता को जो हैं मेरे पालनहार
हाथ पकड़ अपने पैरों पर चलना सिखलाया
ठोकर खाकर गिरने पर उत्साह बढ़ाया
उनका मेरे जीवन पर है अगणित उपकार
माता पिता सभी गुरुजन हैं मेरे शिक्षक, मेरे गुरुवर
लेकर इनसे शिक्षण मैंने पहचाना दुनिया के स्वर
फिर मेरे प्यारे शिक्षक गण उन्हें नमन मैं करती हूँ
उनके दिए ज्ञान से हर पल झोली अपनी भरती हूँ
मैंने तो सीखा है नन्हें बच्चों से भी अनुपम ज्ञान की बात
नन्हें गुरु देते हैं मुझको टेक्नोलॉजी की सौगात
मेरे गुरु धरती आकाश और हैं चांद-सितारे
नदियाँ लता वृक्ष देते हैं मुझको शिक्षण प्यारे-प्यारे
इन सब से भी शिक्षा लेकर आज चली जीवन पथ पर
मेरे प्यारे छोटे बड़े सभी गुरु जन करती हूँ उन्हें नमन
मेरी श्रद्धा के फूल निछावर मेरे गुरुवर को है वंदन
मेरे गुरुवर के चरणों में है मेरा शत-शत बार नमन
एक बार एक दिन नही मेरी पूजा हर दिन होगी
अपने सभी गुरु जन को है मेरा नमन वन्दन
एक दिन का बन्धन नहीं हर पल हर दिन
क्यों ना करूँ मैं मेरे गुरु का हर दिन पूजन अभिनन्दन
✍️ निर्मला कर्ण ( राँची, झारखण्ड )
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