रविवार, जुलाई 18, 2021

( ** गृहिणी आंगन की शोभा ** )

आई हो जब से बनकर मेरे जीवन में,
हूँ अचंभित देख कई रूप तुम्हारा,
तुम्हें मैं क्या क्या नाम दूँ,
कांता ,वामा ,भार्या या दारा।
पर जीवन सदा समर्पित तुम्हारा,
मेरे आंगन की छांव में।
नहीं हो तुम केवल मात्र गृहिणी,
व्यक्ति हो तुम सिर्फ एक,
पर विद्यमान रहती हो कई संबंधों में।
जीती तुम कई टुकड़ों में,
पर बांध के रखती सबको मजबूत रिश्तो में।
अर्धांगिनी भले नाम तुम्हारा,
पर हो तुम मेरी गृहस्वामिनी।
तुम ही हो मेरी प्रियतमा और तुम्ही मेरी प्राणप्रिया,
तुम ही मेरी वल्लभा और तुम्हीं मेरी वामांगिनी।
सदा तुम मेरे हृदय में बसती,
और कहलाती हिर्दयेश्वरी।
प्राणों से बढ़कर तुम हो मेरी,
तभी तो कहता मैं तुम्हें प्राणेश्वरी।
रूप धर तुम लक्ष्मी का,
गृह में मेरे वास करती हो,
तभी तो मेरे घर की गृहलक्ष्मी कहलाती हो।
शोभा बन के तू संग रहती मेरे,
इसीलिए तो तू सिर्फ गृहिणी नही,
है तू मेरे जीवन की जीवनसंगिनी।

                  ✍️ संजय कुमार गुप्ता ( वाराणसी, उत्तर प्रदेश )



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