मंगलवार, जुलाई 20, 2021

* गिरगिट की तरह रंग बदलना *

 

गिरगिट की तरह रंग बदल रहे,

किस राह पर इंसान चल रहे।


देख मन घबरा रहा,

कैसा समय आ रहा,

इंसान-इंसान को मार रहा,

स्नेह ममता के रूप बदल रहे,

गिरगिट की तरह रंग बदल रहे।


ऋतुएं भी रंग बदलने लगी,

प्रकृति इंसान पर हंसने लगी,

मन में नफरत पनपने लगी,

नकाब में चेहरे छल रहे,

गिरगिट की तरह रंग बदल रहे।


सूर्य प्रचंड रूप दिखा रहा,

क्षितिज का रंग फीका रहा,

पहाड़ भी कहां टिका रहा,

उपजाऊ में, बंजर के दखल रहे,

गिरगिट की तरह रंग बदल रहे।


आदमी कर रहा प्रकृति पर प्रहार,

सृष्टि को सहनी पड़ रही मार,

कहीं भूकंप तो कहीं बाढ़,

स्वयं भी इंसान बिलख रहे,

गिरगिट की तरह रंग बदल रहे। 


नदियां सीमाएं तोड़ रही,

प्रलय से नाता जोड़ रही,

बादलों में फटने की होड़ लग रही,

इंसान स्वयं को खुदा समझ रहे

गिरगिट की तरह रंग बदल रहे।

              

              ✍️ सुनीला गुप्ता ( सीकर, राजस्थान )


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