सावन की पहली बदरी
तेरा रूप देखकर मैं मचली
जी चाहे बागों में झूलूं
गाऊं मैं सखियों संग कजरी
बूंदे जब छम छम गिरती हैं
मेरे दिल में पीर सी उठती है
शीतल जल है या अनल है यह
क्यों दिल में आग सी उठती है
बदरी कर दे मेरा एक काम
खत है मेरा यह पिया के नाम
संदेशा मेरा लेजा अविराम
जा उनसे मिल तू उनके गाम
कहना हूँ आस लगाए हुए
उम्मीद का दीया जलाए हुए
यकीं है एक दिन वह आएगा
बैठी हूं सेज सजाए हुए
साजन बिन क्यों आया सावन ?
असुओं से भीग रहा दामन
सूनी आंखें पथ देख रहीं
तू पास मेरे आ जा साजन
क्यों भूल गया झूला झूमर
बगिया में मंडराते हैं भ्रमर
तू कहां गया,जा कहां बसा?
आजा सावन में देर न कर
रिमझिम है वर्षा की फुहार
वसुंधरा ने किया श्रृंगार
उस पर काव्यों की बौछार
आजा वर्षा में गाएं मल्हार
✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )
बहुत सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएं