ज्ञान कुसुम खिलाकर जीवन पथ आसान,
विद्याधन अर्पित करते ज्ञानी गुरु महान।
कला,कौशल पारंगत,बनाते आत्मनिर्भर
किताबों संग हो मित्रता,यह हैं ज्ञान निर्झर।
जिज्ञासा हमारी कर शांत,करते नव सृजन
विनय,विवेक,शील,चारित्र्य,देते संस्कारधन।
बहती निर्मल धारा जैसे आसपास महकाते,
संस्कारों से सुविचार,सदाचार बहु उपजाते।
आत्मनिर्भरता,स्वाभिमान से महकाते कण कण
सिखाते विवेक,विनय,सद्भावना,सदाचरण
कल्याणकारी,सत्यार्थी,सन्मार्ग दर्शक
गुरु हमारे धर्म कर्म पथ प्रदर्शक।
जीवन नैया कौशल से खेते खेवनहार,
हिम्मत,हौसले की आप सक्षम पतवार।
नील गगन में भरने ऊँची ऊँची उड़ान
साहस,संबल देते सदा सकल ज्ञान।
पारस से अनमोल,चतुर जौहरी जाण,
चट्टानों से नवपल्लव का देखे ख्वाब।
शिल्पकार आप घडते हो अनुपम कृतियां,
ज्ञानमोती पिरोकर बनाते हो सुन्दर लड़ियाँ।
चुग लो जी भर ज्ञान कण,ऐसा हो सौभाग्य,
महा ज्ञानी गुरु की निश्रा मिलना,अहा!अहोभाग्य।
प्रभु परमात्मा,पूज्य माता पिता,गुरुजनों का
करे विद्यार्थी नित आदर सम्मान,धन्यवाद।
आशीष अमीरस धारा से,महके जीवन पुष्प,
गुरु चरणों में मिले शरण,मान सम्मान,आशीर्वाद।
वीणा वादिनी,माँ शारदे नमन करूँ,आशीष दो,
विद्या,सुख,संपत्ति,समृद्धि,कृपा
पूज्य गुरु चरणों में शत-शत वंदन करो !
माता पिता की सेवा कर नित मेवा पाओ।
✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )
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