वर्षा ऋतुओं की रानी है
इसकी भी अजब कहानी है l
रिमझिम बरस रहा है बादल
भीग रहा धरती का आंचल
गुंजित है नभ में घन गर्जन
दामिनी झलक दिखाती क्षण क्षण l
प्यासी धरती है हुलस रही
पौधे भी हैं पौधे विलस रहे
ताल तलैया भर जाएंगे
खेतों में पौधे निखर जाएंगे l
चहूं दिश हरियाली है छाई
मौसम वर्षा की है आई
वर्षा ऋतु की रानी है
उसकी भी अजब कहानी है l
कहीं मन मयूर है नाच रहा
आह्लादित बारिश सँग झूम रहा
वर्षा की बूंदे जब झड़ती हैं
खेतों में बीज पनपती है l
कृषकों ने वर्षा का आह्वान किया
किया खेतों में महिमा गान किया
कुछ ऐसे भी बेचारे हैं
जो तकदीर के मारे हैं l
जिनके घर की है छत टूटी
जिनसे उनकी किस्मत रूठी
वह कैसे वर्षा का मान करें
कैसे उसका गुणगान करें l
वे बेचारे सिमटे सिकुड़े हैं
उच्चारित करें अपने दुखड़े हैं
वह मना रहे वर्षा की लड़ी
कब रुके जो उनको चैन पड़े l
फिर भी वरदान है चौमासा
बिन वर्षा जगत रहे प्यासा
वर्षा से ही जिंदगानी है
सब जीवों की जीवन दायिनी है l
वर्षा रानी रूठ अगर जाये
जीवन सारा अकुला जाये
वर्षा से आती खुशहाली है
धरती को देती हरियाली है l
वर्षा ऋतुओं की रानी है
इसकी भी अजब कहानी है l
✍️ निर्मला कर्ण ( राँची, झारखण्ड )
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