लांघे तो कटे तकदीर।
गृहिणी आशीर्वाद है,
प्रभुता रखे हर शीश,
गृहिणी पालनहार है,
अभिनन्दनीय हर रीत।
गृहिणी कंचन सी पवित्र,
जाने अंकुश की रीत,
गृहिणी जनती पुरुष को,
फिर भी सम भयभीत।
गृहिणी सूली पर चढ़ी,
अपनो जी ही रीत,
गृहिणी अग्नि पर चढ़ी,
आदा की रघुकुल प्रीत।
गृहिणी लगी चौसर पर,
धर्म राज के राज,
उसके वस्त्र हरण पर,
अन्धा हुआ समाज।
गृहिणी लड़ी मैदान में,
तोड़ी झूठी रीत,
अंग्रेजों को कटती,
शेष रहे भयभीत।
गृहिणी जलती आग सी,
जब तक भाये प्रीत,
मन मक्कम कर तोड़ दे,
तो रचदे वो नई रीत ।
गृहिणी निर्मल नीर से,
रंग दो अपने रंग,
मानो तो वरदान है,
हर पल उसके संग।
✍️ मंजू शर्मा ( सूरत , गुजरात )
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