रविवार, जुलाई 18, 2021

( ** वादे ** )

कुछ वादे 'बिन कहे' ही 'टूट' जाते हैं,

बचपन से शुरू होते, ये छोटे-छोटे वादे, 

सखियों के साथ ढेरो सपने देखते हुए,

न जाने कहां-कहां घूमने के वादे,

साथ रहने के वादे, कभी न दूर जाने के वादे,

विद्यालय छूटने के बाद दुबारा मिलने के वादे,

सखियों के विवाह में जाने के वादे,

वक्त के साथ 'भूल की धूल' में समा जाते हैं,

जीवन में कितने वादे ऐसे होते हैं,

जिन्हे हम मां-बाबा की आंखों में देखते हैं,

एक बार परदेस जाकर , लौटकर आने के वादे,

उन्हें रोज़ फोन करने के वादे,

वो इंतज़ार करते रहते हैं और वादे टूट.....

शायद ही वो कभी पूरे होते हैं,

जाने-अंजाने हम वादे करते हैं,वो टूटते जाते हैं,

याद आता है मुझे भी वो वादा,

जो किया था मैंने भी,अपनी प्यारी सखी के साथ,

जब उसने कागज़ की गुड़िया, बनाकर दी थी मेरे हाथ,

परेशां मत हो। एक दिन नन्ही सी परी, थमेगी तेरा हाथ,

मैं भावविह्वल सी कर बैठी वादा उससे,

कि जिस दिन ये सपना पूरा होगा मेरा,

पहला फोन करूंगी तुझे "यार",

नन्ही परी जिस दिन आंचल में आई ,

सर्वस्व भूल मैं उसमे समाई,

उसका नंबर जाने, कब कहां खो गया,

जाने वो वादा कब टूट गया,

जाने-अंजाने कुछ वादे, बिन कहे ही टूट जाते हैं,

कुछ हमारे, हमसे ही छूट जाते हैं..........

                    ✍️ डाॅ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )



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