मंगलवार, जुलाई 20, 2021

* एक और एक ग्यारह *

 आओ मिलकर हम बहा दे,
 सच्चाई की एक धारा।
 एक दूजे का साथ निभाए,
 एक और एक ग्यारह।

 चांद अकेला काफी है लेकिन,
 संग रहे तारे तो
 सौरमंडल नजर गई तो लगता कितना प्यारा।
 एक और एक ग्यारह।

 पंछी से सीखा जाता,
 उड़ना आगे बढ़ते जाना।
 पंक्तिबद्द होकर चले,
अच्छादित आकाश सारा।
एक और एक ग्यारह।

 एकाकी को नहीं मिलती मंजिल अकेले चल के,
 संगठन और शक्ति का अंदाज ही है न्यारा।
 एक और एक ग्यारह।

 समाज के साथ रहकर ही सुंदर स्वरूप बनता है,
 अकेला चना भाड़ ना झोंके उल्टा लगता खारा।
 एक और एक ग्यारह।

            ✍️ संगीता सिंघल विभु ( पीलीभीत, उत्तर प्रदेश )

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