शनिवार, जुलाई 24, 2021

* गुरु को बारम्बार प्रणाम *


जीवन में मिठास गुरु से होए,

बिन गुरु जीवन कटु फल सा होए।

गुरु के उपकार,

भला शब्दों में कहाँ बयां होते हैं।

प्रथम गुरु हमारे माँ-बाप होते हैं,

जो हमें ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाते हैं। 

हमें बोलना सीखाते हैं।

हमारे द्वितीय गुरु होते हैं हमारे शिक्षक,

हम इनकी जितनी महिमा गाए उतना कम है।

अंधेरे मन में ज्ञान का दीपक जो जलाऐ वो गुरु है।

कठिनाई से भरी जिन्दगी को सरल बनाए वो गुरु है।

गुरु बिन ज्ञान कहाँ, उसके ज्ञान का ना अंत यहाँ।

आखिर तट पर बैठे-बैठे कब तक तू सोचता जाएगा।

गुरु के ज्ञान के सागर में जब तक डूबकी नहीं लगाएगा।

तब तक ज्ञान रत्न तुझे नही मिल पाएगा।

एक हमारे माँ-बाप और दूसरा गुरु ही तो है,

जो हमारे लिए नेकी कर दरिया में डाल देते है।

बंज़र पड़े हमारे जीवन में खुशियों की फसल उगाते है।

एक गुरु ही तो है जो नेक राह पर चलाता है,

अच्छे-बुरे का फर्क बतलाता है।

हे ! गुरुवर आपको मेरा नमन हैं बारम्बार।

आपने अपने ज्ञान के वेग से 

हमारे उजड़े हुए उपवन को पुष्पित कर दिया।

संसार में हमें हमारा अस्तित्व बताया।

सबके साथ मिल जुलकर रहना सिखाया।

धर्म, वृद्धि, सेवा, तप, दान, 

सब आपसे आता यह ज्ञान।

गुरु आप ना होते तो हम होते गुमनाम,

हमारे ज्ञान के चक्षु को खोलने के लिए,

आपको हमारा बारम्बार प्रणाम।


          ✍ निर्मला सिन्हा ( राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ )


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