काम काज मे उफ़ ना करें देख रेख निरखे परखे सुचारू गृहस्थी चला गृहिणी समर्पित जीवन करके
ताल मेल बच्चों से मिला
संस्कार की बन पाठशाला
हर एक कार्य मे सजग रहे
हृदय प्रेम की मधुशाला
कम है तो कम में खुश
सह पीड़ा सह जाये दुःख
अंतर मन विशाल है उसका
चलती, सीखा न जाना रूक
भविष्य बनाने को करती है
अपने बच्चों पे जीती-मरती है
एक आवाज़ मे दौड़ी आये
दिनभर सेवा करती है
गृहिणी गृह की रक्षक होती
धैर्य कभी न अपना खोती
भारत मे नारी गृहिणी बने जब
पूर्ण जीवन अपना कर लेती
धीरज धर्म की देवी को प्रणाम
संसार मे सबसे ऊँचा है गृह धाम
गृहिणी लक्ष्मी सद्श विराजमान
बनेंगे उस घर के बिगड़े काम
✍️ संगीता सिंघल विभु ( पीलीभीत, उत्तर प्रदेश )
आभार धन्यवाद पुनीत अनुपम साहित्य समूह का।
जवाब देंहटाएंआभार
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