देश की खातिर आगे आओ,
भूल भेदभाव की बातों को,
मानवता का सार पढ़ाओ,
कदम बढ़ाओ,
एक और एक ग्यारह हो जाओ,
चल रही नफरत की आंधी,
उस आंधी को शांत कराओ,
बिछड़ते दिलों में अखंडता का दीप जलाओ,
भिन्न धर्म है भिन्न प्रांत हैं, भाषाएं, वेशभूषा भिन्न,
किंतु लहू का रंग एक है,
बूंद-बूंद से सागर बनता,
एक-एक मोती से माला,
दुश्मन खड़ा सरहद पर,
विचारों की लड़ाई में ,
तोड़ रहा हमें आपस में उलझा कर,
है इतिहास गवाह कि जब-जब हम विलग हुए हैं,
गुलामी में कैद हुए,
मत तोड़ो मोती की माला ,
अपने और अपनों की खातिर ,
एक और एक ग्यारह हो जाओ,
सबको समान अधिकार मिले ,
शांति और सद्भावना का सबके मन में दीप जलाओ,
हम सब एक ही जगदीश्वर के बंदे,
है मातृभूमि सुंदर परिवेश,
एक नया विश्वास जगाओ,
मिलकर नये कीर्तिमान बनाओ,
एक और एक ग्यारह हो जाओ।
✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )
बहुत सुंदर सृजन
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